सरहुल उत्सव: झारखंड और व्यापक छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासियों ने हाल ही में सरहुल उत्सव मनाया, जो नववर्ष और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है।
o सरहुल, जिसका शाब्दिक अर्थ है “साल वृक्ष की पूजा”, सूर्य और पृथ्वी के प्रतीकात्मक मिलन का उत्सव है
o गांव का पुजारी (पाहन) सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि उसकी पत्नी (पाहेन) पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करती है, जो जीवन की नींव को दर्शाता है।
o इन अनुष्ठानों के बाद ही आदिवासी अपने खेत जोतते हैं, बीज बोते हैं या वन उत्पाद एकत्र करना शुरू करते हैं।
o सरहुल का विकास: 1960 के दशक में, आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव ने रांची में हटमा से सिरम टोली सारना स्थल तक सरहुल शोभायात्रा की शुरुआत की।