सरहुल उत्सव

सरहुल उत्सव: झारखंड और व्यापक छोटानागपुर क्षेत्र में आदिवासियों ने हाल ही में सरहुल उत्सव मनाया, जो नववर्ष और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है

  • सरहुल पर्व के बारे में: सरहुल एक प्रमुख आदिवासी पर्व है, जो प्रकृति पूजा और साल वृक्षों (शोरिया रोबस्टा) की आराधना से गहराई से जुड़ा हुआ है। इन वृक्षों को सरना मां का निवास स्थल माना जाता है, जो गांवों की संरक्षक देवी हैं।
  • प्रकृति पूजा: साल वृक्ष (शोरिया रोबस्टा) की आदिवासी परंपरा में पूजा की जाती है और इन्हें सारना माँ का निवास माना जाता है, जो प्राकृतिक शक्तियों से गांवों की रक्षा करने वाली देवी हैं।

o सरहुल, जिसका शाब्दिक अर्थ है “साल वृक्ष की पूजा”, सूर्य और पृथ्वी के प्रतीकात्मक मिलन का उत्सव है

o गांव का पुजारी (पाहन) सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि उसकी पत्नी (पाहेन) पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करती है, जो जीवन की नींव को दर्शाता है।

o इन अनुष्ठानों के बाद ही आदिवासी अपने खेत जोतते हैं, बीज बोते हैं या वन उत्पाद एकत्र करना शुरू करते हैं।

  • तीन दिवसीय उत्सव: मुख्य अनुष्ठान दूसरे दिन सारना स्थलों (पवित्र उपवनों) में होते हैं, जो झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बिहार के गांवों में स्थित होते हैं।

o सरहुल का विकास: 1960 के दशक में, आदिवासी नेता बाबा कार्तिक उरांव ने रांची में हटमा से सिरम टोली सारना स्थल तक सरहुल शोभायात्रा की शुरुआत की।