अदालत की अवमानना (Contempt of Court)

अदालत की अवमानना (Contempt of Court): भारत के कानून मंत्री के अनुसार, वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 1.45 लाख से अधिक अवमानना के मामले लंबित हैं।

  • इसके बारे में: अदालत की अवमानना एक ऐसा अपराध है जिसमें न्यायालय की गरिमा और अधिकार का अनादर या उपेक्षा की जाती है। इसमें वे सभी कार्य या व्यवहार शामिल होते हैं जो न्यायिक प्रणाली की अखंडता को कमजोर करते हैं या न्याय के प्रशासन में बाधा डालते हैं।
    • वैधानिक आधार: अवमानना अधिनियम, 1971 (Contempt of Courts Act, 1971)। यह अवमानना को दो श्रेणियों में विभाजित करता है— नागरिक और आपराधिक।

    o नागरिक अवमानना: इसका तात्पर्य किसी न्यायालय के आदेश की जानबूझकर अवहेलना से है।

    o आपराधिक अवमानना: इसमें कोई भी ऐसा कार्य या प्रकाशन शामिल है जो—

    • न्यायालय को कलंकित करना: ‘न्यायालय को कलंकित करना’ (Scandalising the Court) एक व्यापक शब्द है, जो उन वक्तव्यों या प्रकाशनों को दर्शाता है जिनका प्रभाव सार्वजनिक विश्वास को न्यायपालिका से कमज़ोर करना होता है।

    o किसी भी न्यायिक कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डालना, तथा किसी भी अन्य तरीके से न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करना

    • संवैधानिक आधार:

    o अनुच्छेद 19(2): संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर न्यायालय की अवमानना को एक यथोचित प्रतिबंध के रूप में सम्मिलित किया गया है।

    o अनुच्छेद 129: इसमें उल्लेख है, "सुप्रीम कोर्ट एक अभिलेख न्यायालय (court of record) होगा और उसे ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जिसमें स्वयं की अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति भी सम्मिलित है।“

    o अनुच्छेद 215: अनुच्छेद 129 के समान, अनुच्छेद 215 उच्च न्यायालयों को उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर अपनी अवमानना के लिए दंडित करने का अधिकार प्रदान करता है।