नाटकीय प्रदर्शन अधिनियम

भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल ही में औपनिवेशिक युग के नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 को निरस्त करने पर प्रकाश डाला है तथा सवाल उठाया है कि आजादी के 75 साल बाद भी यह पुराना कानून क्यों लागू था है।

  • नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 के बारे में: ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रवादी भावनाओं को दबाने के लिए लागू किया गया, विशेष रूप से प्रिंस ऑफ वेल्स (1875-76) की यात्रा के बाद।
  • उस युग के अन्य औपनिवेशिक कानून: वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878, और राजद्रोह कानून, 1870।
  • अधिनियम के प्रावधान:
  • सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध: अधिकारियों को ऐसे नाटकों, पेंटोमाइम या नाटकीय प्रस्तुतियों पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति थी, जिन्हें अश्लील, मानहानिकारक, देशद्रोही या उत्तेजक माना जाता था।
  • न्यायिक शक्तियाँ: मजिस्ट्रेटों को उन स्थलों की तलाशी लेने और जब्त करने की शक्ति थी, जहां प्रतिबंधित प्रदर्शन किए जा रहे थे।
  • स्वतंत्रता के बाद की स्थिति: राज्य बनाम बाबू लाल एवं अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1956) द्वारा इसे असंवैधानिक घोषित किया गया, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19(2) का उल्लंघन करता था।