दोषी व्यक्ति एवं चुनाव लड़ने का अधिकार

1.दोषी व्यक्ति एवं चुनाव लड़ने का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत कानूनी प्रावधानों के बारे में:

o धारा 8(3) - जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: दो या अधिक वर्षों की सजा पाने वाले व्यक्ति को अयोग्य घोषित करता है। ऐसे व्यक्ति रिहाई के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहते हैं।

o धारा 8(1) - जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: बलात्कार, अस्पृश्यता (PCR अधिनियम), गैरकानूनी संगठन (UAPA) और भ्रष्टाचार (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को, सजा की अवधि की परवाह किए बिना, रिहाई के बाद भी छह वर्षों तक अयोग्यता बनी रहती है।

  • पिछले सुप्रीम कोर्ट के फैसले: ADR मामला (2002), मुख्य चुनाव आयुक्त बनाम जन चौकीदार (2013) और लिली थॉमस मामला (2013) ।
  • चुनाव आयोग की भूमिका: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11 के तहत, चुनाव आयोग को दोषी व्यक्ति की अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने का अधिकार प्राप्त है।

oचुनाव आयोग का निर्णय (2019): चुनाव आयोग ने प्रेम सिंह तमांग (जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी थे) की अयोग्यता की अवधि को छह वर्ष से घटाकर 13 महीने कर दिया, जिससे उन्हें उपचुनाव लड़ने और जीतने की अनुमति मिली।

  • महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े:
  • ADR रिपोर्ट (2024): 543 निर्वाचित सांसदों में से 46% के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, → जिनमें से 31% गंभीर आरोपों (बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण) का सामना कर रहे हैं।

    o जीतने की संभावना: जिन उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले हैं, उनकी जीतने की संभावना 15.4% है, जबकि स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों के लिए यह मात्र 4.4% है।

    • विधि आयोग (1999, 2014) और चुनाव आयोग: 5+ साल की सजा वाले अपराधों में लिप्त उम्मीदवारों पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश।
    • न्यायिक समीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय को चुनाव आयोग की अयोग्यता को हटाने या कम करने की शक्ति की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करनी चाहिए।