'दुर्लभतम में दुर्लभ' सिद्धांत (Rarest of rare’ Doctrine)

हाल ही में हुए दो हत्या मामलों में, जिनमें विपरीत फैसले दिए गए - एक में आजीवन कारावास, दूसरे में मृत्युदंड - ने भारत में 'दुर्लभतम में दुर्लभ' सिद्धांत पर बहस छेड़ दी है।

  • 'दुर्लभतम में दुर्लभ' सिद्धांत की अवधारणा के बारे में: बचन सिंह VS पंजाब राज्य (1980) में स्थापित, यह सिद्धांत कहता है कि मृत्युदंड केवल असाधारण मामलों में ही दिया जाना चाहिए।
  • मच्छी सिंह VS पंजाब राज्य (1983) ने ऐसे मामलों के निर्धारण के लिए एक रूपरेखा प्रदान की।
  • पाँच मानदंड पहचाने गए:

o हत्या करने का तरीका - यदि यह अत्यंत क्रूर एवं जघन्य है।

o हत्या का उद्देश्य - यदि यह पूर्णतया अनैतिकता दर्शाता है।

o सामाजिक रूप से घृणित प्रकृति यदि पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित है या अपराध सामाजिक आक्रोश भड़काता है।

o अपराध का परिमाण - यदि पैमाना बड़ा और भयावह है।

o पीड़ित का व्यक्तित्व - यदि पीड़ित बच्चा, असहाय महिला या बुजुर्ग व्यक्ति है।

  • संबंधित मामले: कोलकाता आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज केस (2024) - 'दुर्लभतम में से दुर्लभ' के रूप में योग्य नहीं। •

o शेरोन राज मर्डर केस (2022) - 'दुर्लभतम' के रूप में वर्गीकृत।

  • सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास: जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1972), मिठू बनाम पंजाब राज्य (1983), और सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा (2022)