गांधी-इरविन समझौता

गांधी-इरविन समझौता 5 मार्च 1931 को हस्ताक्षरित किया गया था। हाल ही में यह चर्चा में आया जब एक इतिहासकार ने तर्क दिया कि गांधी इससे अधिक कुछ नहीं कर सकते थे।

  • आलोचक तर्क देते हैं कि गांधी ने दिल्ली समझौते (Delhi Pact) को भगत सिंह के जीवन से अधिक प्राथमिकता दी, जबकि कुछ का मानना है कि उन्होंने प्रयास किए, लेकिन ब्रिटिश सरकार पर उनका वास्तविक प्रभाव नहीं था।

गांधी-इरविन समझौते के बारे में: 25 जनवरी 1931 को गांधी और कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सभी सदस्य बिना शर्त रिहा कर दिए गए।

  • CWC ने गांधी को वायसराय लॉर्ड इरविन के साथ वार्ता शुरू करने के लिए अधिकृत किया।
  • ये चर्चाएं दिल्ली समझौते (गांधी-इरविन समझौते) तक पहुंचीं, जिसे 14 फरवरी 1931 को हस्ताक्षरित किया गया। इसने कांग्रेस को ब्रिटिश भारतीय सरकार के साथ समान स्तर पर ला दिया।

समझौते के प्रावधान: सभी राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई (जो हिंसा के दोषी नहीं थे)।

  • अभी तक वसूले न गए सभी जुर्मानों की माफी।
    • जप्त की गई भूमि को वापस लौटाना, जब तक कि उसे किसी तीसरे पक्ष को न बेचा गया हो।
    • त्यागपत्र दे चुके सरकारी कर्मचारियों के प्रति नरम व्यवहार।
    • निजी उपभोग के लिए तटीय गांवों में नमक बनाने का अधिकार (व्यावसायिक बिक्री के लिए नहीं)।
    • शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध प्रदर्शन का अधिकार।
    • आपातकालीन अध्यादेशों की वापसी।

    ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रमुख मांगों की अस्वीकृति: पुलिस की ज्यादतियों की सार्वजनिक जांच, भगत सिंह और उनके साथियों की मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की मांग को ठुकरा दिया गया।