महात्मा ज्योतिबा फुले

महात्मा ज्योतिबा फुले: 11 अप्रैल को महात्मा ज्योतिबा फुले (1827–1890) की जयंती मनाई जाती है, जो एक अग्रणी समाज सुधारक, शिक्षाविद् और जातिविरोधी कार्यकर्ता थे। उनकी विरासत आज भी भारत में सामाजिक न्याय आंदोलनों को प्रेरित करती है।

  • महात्मा ज्योतिबा फुले के बारे में: इनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को माली जाति में हुआ था, जो पारंपरिक रूप से बागवानी और फूलों के व्यवसाय से जुड़ी थी।

o थॉमस पेन की पुस्तक ‘एज ऑफ रीज़न’ से प्रभावित हुए, जिसने ईसाई रूढ़िवाद की आलोचना की थी, और फुले ने इसे हिंदू रूढ़िवाद से जोड़ा।

  • शिक्षा संबंधी पहल: 1848 में, फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले ने भारत का पहला कन्या विद्यालय स्थापित किया। अगले तीन वर्षों में 18 और विद्यालय खोले। 1855 तक पुणे में श्रमिकों, किसानों और कामकाजी महिलाओं के लिए रात्रि पाठशालाएं शुरू कीं।
  • रूढ़िवाद का विरोध: इन्होंने विष्णु शास्त्री चिपलुंकर और बाद में उनके शिष्य बाल गंगाधर तिलक का विरोध किया।

o दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए ब्रिटिश सरकार के साथ कार्य किया।

o वैचारिक मतभेदों के बावजूद तिलक और गोपाल गणेश आगरकर को डोंगरी जेल से जमानत दिलाई।

  • सत्यशोधक समाज: इसकी स्थापना सितंबर 1873 में ब्रह्मो समाज, प्रार्थना समाज और आर्य समाज जैसे उच्च जाति-प्रधान सुधार आंदोलनों के विकल्प के रूप में की गई थी।
  • गुलामगिरी (ग़ुलामी): भारत में जाति आधारित उत्पीड़न की अमेरिकी ग़ुलामी से तुलना की।
  • सत्सार (सत्य का सार): पंडिता रमाबाई के ईसाई धर्म अपनाने के अधिकार का समर्थन किया।

o यह ब्राह्मण और शूद्र के बीच एक संवाद है जो ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती देता है।

  • शेतकऱ्यांचा आसूड (किसानों की कोड़ा): किसानों के पक्ष में मशीनों के उपयोग और गोहत्या के धार्मिक विकल्पों के पक्ष में तर्क दिए।
  • सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक: सभी धर्मग्रंथों को अंतःप्रक्षिप्त बताकर अस्वीकार किया, जिससे संप्रदायवाद को बढ़ावा मिलता है।
  • विरासत: फुले का जाति, अंधविश्वास और लैंगिक अन्याय के खिलाफ आजीवन संघर्ष आधुनिक क्रांतिकारी सोच और कार्रवाई को प्रेरित करता है।