उत्सर्जन व्यापार योजना (ETS)

उत्सर्जन व्यापार योजना (ETS): सूरत में पार्टिकुलेट उत्सर्जन के व्यापार हेतु विश्व का पहला बाजार-आधारित तंत्र शुरू किया गया, जिसने एक औद्योगिक क्लस्टर में प्रदूषण को 20–30% तक कम करने में सहायता की।

  • उत्सर्जन व्यापार योजना (ETS) के बारे में: इसका उपयोग ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु किया जाता है, साथ ही उद्योगों को वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान किए जाते हैं।
  • उत्सर्जन पर सीमा: नियामक एक निश्चित सीमा निर्धारित करते हैं कि वातावरण में अधिकतम कितनी मात्रा में उत्सर्जन किया जा सकता है।
  • अनुमति आवंटन: उद्योगों को जुर्माने या नोटिस के स्थान पर उत्सर्जन परमिट या भत्ते दिए जाते हैं।
  • कैप-एंड-ट्रेड तंत्र: इस प्रणाली को ‘कैप-एंड-ट्रेड’ कहा जाता है क्योंकि परमिट उद्योगों के बीच खरीदे-बेचे जा सकते हैं।
  • प्रदूषण सीमा: प्रत्येक परमिट एक निश्चित मात्रा के प्रदूषण (जैसे प्रति किलोग्राम PM या टन CO₂) के उत्सर्जन की अनुमति देता है।
  • व्यापार प्रोत्साहन: जो संयंत्र प्रदूषण-नियंत्रण तकनीक अपनाते हैं, वे परमिट बचाकर अन्य संयंत्रों को बेच सकते हैं।
  • अनुपालन सहायता: सीमित संसाधनों वाले संयंत्रों को स्वच्छ तकनीक में स्थानांतरण हेतु समय मिलता है, जबकि वे उत्सर्जन सीमा के भीतर रहते हैं।
  • मूल्य सीमा: बाजार में स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु न्यूनतम आधार मूल्य और अधिकतम सीमा मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।
  • सीमा समायोजन: प्रदूषण निगरानी डेटा के आधार पर नियामक उत्सर्जन सीमा को कड़ा कर सकते हैं।
  • उल्लंघन के लिए दंड: निर्धारित सीमा का उल्लंघन करने वाले उद्योगों को प्रति टन के अनुसार दंड देना पड़ता है तथा उन्हें परमिट भी वापस करना पड़ सकता है।